Manimahesh yatra 2023: कैलाश पर्वत में नीलमणि का गुण, सूर्य की किरणें नीले रंग में रंगती हैं
हाइलाइट़़्स
- अधिकारिक रूप से यात्रा 07 से 23 सितंबर तक ही होगी
- पंजीकरण अनिवार्य, यात्रा के दौरान प्रिंटआउट ले जाना आवश्यक
- एक मोबाइल नंबर से अधिकतम पांच व्यक्तियों के ही आवेदन
- भरमौर क्षेत्र में बीएसएनएल, जियो और एयरटेल का नेटवर्क कमजोर
- ओटीपी प्राप्त नहीं होने की समस्या का सामना का करना पड़ सकता है सामना
- भरमौर पहुंचने से पहले अपना पंजीकरण अवश्य करवा लें
- हड़सर बेस कैंप में होगा यात्रियो का मेडिकल चेकअप
- अस्वस्थ पाए जाने पर यात्रा शुरू करने की अनुमति नहीं
फीचर डेस्क, टीएनसी
चंबा/भरमौर। धौलाधार, पांगी व जांस्कर पर्वत शृंखलाओं से घिरे भगवान शिव के कैलाश पर्वत की मणिमहेश यात्रा वीरवार से शुरू हो रही है। चंबा शहर से करीब 82 किलोमीटर की दूरी पर मणिमहेश स्थित है। मान्यता है कि श्रद्धालुओं के आस्था के सैलाब के बीच भगवान कैलाश पर्वत पर भगवान भोले मणि के रूप में दर्शन देते हैंं। वैज्ञानिक पहलू से जोड़ते हुए हिमाचल सरकार ने इस पर्वत को टरकॉइज माउंटेन यानी वैदूर्यमणि या नीलमणि कहा है। मणिमहेश में कैलाश पर्वत के पीछे जब सूर्य उदय होता है तो सारे आकाश मंडल में नीलिमा छा जाती है और किरणें नीले रंग में निकलती हैं। ऐसा कहा गया है कि यहां कैलाश पर्वत में नीलमणि का गुण-धर्म है, जिनसे टकराकर सूर्य की किरणें नीले रंग में रंगती हैं।
पीर पंजाल की पहाडियों के पूर्वी हिस्से में चंबा जिले की तहसील भरमौर में मणिमहेश तीर्थ स्थित है। हजारों साल से चली आ ही इस तीर्थ यात्रा के रोमांच के लिए श्रद्धालु आतुर हैं। जत्थों में भगवान शिव के दर्शन करने के लिए भक्त कैलाश पर्वत की ओर कूच कर गए हैं। 13,500 फीट की ऊंचाई पर किसी प्राकृतिक झील का होना किसी दैवीय शक्ति का प्रमाण है, जिसमें सात सितंबर को आस्था की डुबकी लगाकर भोले बाबा के भक्त धन्य होंगे। 23 तक यह यात्रा जारी रहेगी। प्रशासन के दिशा निर्देशों को दरकिनार करके यात्रा करने वाले अपनी और दूसरों की जान जोखिम में भी डाल सकते हैं। अनुशासित होकर सुरक्षित यात्रा से मणिमहेश तीर्थ का उद्ेश्य पूर्ण हो सकता है।
मणिमहेश तक का सफर, हेलीटैक्सी भी कर सकते हैं बुक
अधिक जानकारी के लिए : https://hpchamba.nic.in/manimahesh-yatra/
पंजीकरण के लिए : https://www.manimaheshyatra.hp.gov.in/register
हेलीटैक्सी बुकिंग के लिए : https://helitaxii.com/
भरमौर से मणिमहेश 17 किलोमीटर, चंबा से करीब 82 किलोमीटर और पठानकोट से 220 किलोमीटर की दूरी पर है। पठानकोट मणिमहेश कैलाश यात्रा के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन है, जबकि कांगड़ा हवाई अड्डा नजदीकी हवाई अड्डा है। यहां से अपने वाहन या टैक्सी के माध्यम से यात्रा शुरू की जा सकती है। हड़सर या हरसर नामक स्थान सड़क का अंतिम पड़ाव है। यहां तक वाहन पहुंचते हैं। इससे आगे पहाड़ी और सर्पीले रास्तों पर पैदल या घोड़े-खच्चरों की सवारी कर ही सफर तय होता है। चंबा, भरमौर और हड़सर तक सड़क बनने से पहले चंबा से ही पैदल यात्रा शुरू हो जाती थी। हड़सर से मणिमहेश झील की दूरी करीब 13 किलोमीटर है। पैदल तीर्थयात्रा चंबा जिले के 6000 फीट की ऊंचाई पर स्थित हड़सर गांव से शुरू होती है। अब हेलीकाप्टर से भी मणिमहेश तक पहुंच सकते हैं।
महिलाएं गौरीकुंड में करती हैं स्नान
गौरीकुंड पहुंचने पर प्रथम कैलाश शिखर के दर्शन होते हैं। गौरीकुंड माता गौरी का स्नान स्थल है। यात्रा करने वाली महिलाएं यहां स्नान करती हैं। यहां से करीब डेढ़ किलोमीटर की सीधी चढ़ाई के बाद मणिमहेश झील तक पहुंचा जाता है। यह झील चारों ओर से पहाड़ों से घिरी हुई। यहां का खूबसूरत दृश्य पैदल पहुंचने वालों की थकावट को क्षण भर में दूर कर देता है।
चंबा गजेटियर: पारंपरिक वार्षिक यात्रा आरंभ करने का श्रेय योगी चरपटनाथ को
चंबा गजेटियर के अनुसार योगी चरपटनाथ ने राजा साहिल वर्मा को राज्य के विस्तार के लिए उस इलाके को समझने में काफी सहायता की थी। गीता प्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित कल्याण पत्रिका के शिवोपासनांक में छपे एक लेख के अनुसार मणिमहेश-कैलाश की खोज और पारंपरिक वार्षिक यात्रा आरंभ करने का श्रेय योगी चरपटनाथ को जाता है। पहले यात्रा तीन चरणों में होती थी। पहली यात्रा रक्षा बंधन पर होती थी। इसमें साधु संत जाते थे। दूसरा चरण भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर किया जाता था जिसमें जम्मू काशमीर के भद्रवाह , भलेस के लोग यात्रा करते थे। ये लोग आज भी सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा अपने बच्चों के साथ करते हैं। तीसरा चरण दुर्गाअष्टमी या राधाष्टमी को किया जाता है, जिसे राजाओं के समय से मान्यता प्राप्त है। अब प्रदेश सरकार ने भी इसे मान्यता प्रदान की है।
यात्रा में क्या करें
- यात्रियों से अनुरोध है कि वे अपने साथ मेडिकल सर्टिफिकेट लेकर बेस कैंप हुदसर में आवश्यक स्वास्थ्य जांच करवाएं। यात्रा तभी करें जब आप पूरी तरह स्वस्थ हों।
- छह सप्ताह से अधिक की गर्भवती महिलाओं को यात्रा नहीं करनी चाहिए।
- सांस फूलने पर वहीं रुक जाएं।
- अपने साथ छाता, रेनकोट, गर्म कपड़े, गर्म जूते, टॉर्च और छड़ी लेकर आएं।
- यात्रा के दौरान चप्पल की जगह जूते का प्रयोग करें।
- प्रशासन द्वारा निर्धारित मार्गों का प्रयोग करें।
- किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्या के लिए नजदीकी कैंप में संपर्क करें।
- साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।
- दुर्लभ जड़ी-बूटियों और अन्य पौधों के संरक्षण में मदद करें।
- किसी भी प्रकार का दान या प्रसाद केवल ट्रस्ट के डोनेशन कंटेनर में ही दान करें।
- सभी COVID-19 प्रोटोकॉल का पालन करें। यात्रियों को अपने साथ मास्क और सैनिटाइजर लाना होगा।
- यात्रा के दौरान यात्रियों को हमेशा अपना पहचान पत्र साथ रखना चाहिए।
क्या न करें
- बेस कैंप हड़सर से सुबह 04:00 बजे से पहले और शाम 04:00 बजे के बाद यात्रा न करें।
- अकेले यात्रा न करें, साथियों के साथ ही यात्रा करें। बलपूर्वक न चढ़ें और फिसलन वाले जूते न पहनें, यह घातक हो सकता है।
- खाली प्लास्टिक की बोतलें और रैपर खुले में न फेंके, अपने साथ लायें और कूड़ेदान में डालें।
- जड़ी-बूटियों और दुर्लभ पौधों से छेड़छाड़ न करें।
- किसी भी प्रकार के मादक द्रव्य, मांस, शराब आदि का सेवन न करें। यह एक धार्मिक यात्रा है, इसकी पवित्रता का ध्यान रखें।
- इस यात्रा को पिकनिक या मौज-मस्ती के रूप में न लें और केवल भक्ति और विश्वास के साथ ही तीर्थ यात्रा करें।
- पवित्र मणिमहेश डल झील के आसपास स्नान के बाद कचरा, गीले कपड़े और अपने अधोवस्त्र न फेंके, उन्हें पास में लगे कूड़ेदान में फेंके।
- किसी भी तरह के शार्ट कट का इस्तेमाल न करें।
- प्लास्टिक का प्रयोग न करें।
- ऐसा कोई भी काम न करें जिससे पर्यावरण प्रदूषित हो और पर्यावरण को कोई नुकसान न पहुंचे।
- यात्रा के दौरान यदि मौसम खराब हो तो हड़सर और डल झील के बीच धनचो, सुंदरसी, गौरीकुंड और डल झील के बीच किसी सुरक्षित स्थान पर रुकें। यात्रा तभी शुरू करें जब मौसम अनुकूल हो।