Jogindernagar News: चौहारघाटी के काष्ठशैली मकानों में फिर लगा दिए सूखी घास के ढेर, हादसों की आशंका
- दुर्गम क्षेत्र में ठंड से बचने के लिए हर साल की भांति ग्रामीणों के द्वारा कर रखा है सूखी लकड़ी का भंडारण
टीएनसी, संवाददाता
जोगिंद्रनगर(मंडी)। चौहारघाटी में काष्ठ शैली मकानों में सूखी घास के ढेर अग्निकांड के बड़े हादसों की आशंका को बढ़ावा दे रहे हैं। बीते तीन दशकों में आग के भयावह मंजर के बाद भी आम लोगों ने बारूद की तरह सूखी घास का ढेर हर घर में सजा दिया है। ऐसे में अगर आग की घटना होती है तो लाखों रूपये की संपति पल भर में खाक हो जाएगी। ऐसी आशंका को लेकर चौहारघाटी के कुछ जागरूक लोगों ने इंटरनैट मिडिया पर तस्वीरें सांझी करते हुए स्थानीय प्रशासन, दमकल विभाग व वहां के पंचायत प्रतिनिधियों से आवश्यक कार्रवाई की मांग की है।
दरअसल चौहारघाटी में सर्द मौसम में ठंड से बचने के लिए लकड़ी के ढेर और पशु चारे के लिए सूखी घास हर साल ग्रामीणों के द्वारा एकत्रित की जाती है। लेकिन यह सब यहां के वाशिदों के लिए नुकसानदायी भी साबित हुई है। बीते कई सालों में आग के कारणों का कारण बन चुके सूखी घास व लकड़ी के ढेर इस साल भी अग्निकांड की संभावनाओं को प्रबल कर रहे हैं। जिसका कारण एक यह भी है कि यहां पर अधिकांशा रिहायशी मकान काष्ठशैली से बने हुए हैं जो एक दूसरे से सटे होने के कारण किसी भी अनहोनी घटना में लोगों की जान के लिए भी जोखिम पैदा करते हैं। क्योंकि द्रंग हल्के में दिसंबर जनवरी माह में भारी बर्फबारी शुरू हो जाती है इसलिए ग्रामीणों के द्वारा सूखी घास और लकड़ी का भंडारण किया जाता है। लेकिन आग की एक चिंगारी अचानक भड़क जाने पर अग्निकांड की घटना का कारण भी ग्रामीणों की यह लापरवाही बन सकती है। इसलिए सहमे लोगों ने स्थानीय प्रशासन व पुलिस से इस तरह के भंडारण को रिहायशी इलाके से दूर रखने की मांग की है ताकि किसी भी प्रकार की अनहोनी घटना न घट सके।
चौहारघाटी में अब तक के बड़े अग्निकांडों में राख हो चुकी है करोड़ों की संपत्ति
द्रंग हल्के की चौहारघाटी में बीते तीन दशकों में हुए बड़े अग्निकांडों में करोड़ों की संपति जलकर राख हो चुकी है। इनमें बड़ा गांव, स्वाड गांव, बोचिंग, लोहारड़ी व बरोट मुख्य बाजार में आग की घटनाओं में लगभग 20 से अधिक रिहायशी मकान, दस गौशाला, व कई पशु भी जिंदा जलकर राख के ढेर बन चुके हैं। 1970, 80, 90 और 2000 में ऐसी आग की घटनाओं में कोठी कोहड़, धरमाण गांव भी आग की घटना से लाखों का नुकसान उठा चुका है। बावजूद उसके भी ग्रामीणों ने सबक नहीं लिया और इस साल भी सूखे घास व लकड़ी का भंडारण लगभग हर घर में कर रखा है।
आग पर काबू पाने के लिए 60 से 80 किलोमीटर दूर है अग्निशमन केंद्र
द्रंग हल्के की चौहारघाटी के उपरोक्त गांव में अचानक अगर आग की कोई बड़ी घटना घट जाए तो यहां पर अग्निशमन केंद्र भी करीब 60 से 80 किलोमीटर दूर है। जोगेंद्रनगर से बरोट कोठी कोहड़ तक पहुंचने के लिए दमकल विभाग को करीब डेढ घंटे का समय लग जाता है वहीं पधर स्थित दमकल चोकी की बात करें तो इसे भी 50 किलोमीटर का सफर तय करने के लिए करीब एक घंटे का समय लगेगा। दमकल विभाग के जिला कमांडेंट भूपेंद्र सिंह ने बताया कि दोनों ही चौकियों के प्रभारियों को दलबल के साथ ग्रामीणों को सूखी घास व लकड़ी के भंडारण रिहायशी इलाकों के नजदीक न करने पर जागरूक किया जाएगा। ताकि सर्द मौसम में फिर आग की कोई बड़ी घटना चौहारघाटी में न घटे।