International Webinar: भारत की बढ़ती साख के साथ यकीनन हिंदी की साख भी बढ़ेगी
हाइलाइट्स
- प्रवासी हिंदी साहित्य पर आयोजित किया अंतरराष्ट्रीय वेबिनार
- हिंदी यूएन में आधिकारिक तौर पर हो स्वीकृत , करें प्रयास
- भारत को जानने के लिए हिंदी साहित्य जानना जरूरी
- प्रवासी साहित्य एक अब महत्वपूर्ण दस्तावेज बन रहा
टीएनसी, संवाददाता
मंडी। प्रवासी भारतीय दिवस व विश्व हिंदी दिवस पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में साहित्यकारों ने मातृभाषा हिंदी के उत्थान और प्रचार को लेकर मंथन किया। साहित्यकारों ने कहा कि भारत की बढ़ती साख के साथ यकीनन हिंदी की साख भी बढ़ेगी। कार्यक्रम उत्थान फाउंडेशन द्वारका, नई दिल्ली, के तत्वावधान में हुआ। संधोल निवासी उत्थान फाउंडेशन की निदेशिका व वेबिनार की संचालिका अरूणा घवाना ने कहा कि प्रवासी भारतीयों का हिंदी के प्रचार-प्रसार में योगदान को नजर अंदाज के नहीं किया जा सकता। किंतु जब तक हिंदी यूएन में आधिकारिक तौर पर स्वीकृत नहीं होती, हमें प्रयासरत रहना चाहिए।
वेबिनार के अध्यक्ष प्रसिद्ध भाषाविद् डॉ. विमलेश कांति वर्मा ने कहा कि प्रवासी साहित्य एक विस्थापन का साहित्य है। किंतु यह सत्य है कि हिंदी सार्वभौमिक हो रही है। प्रवासी भारतीय दिवस को आयोजित वेबीनार के अतिथि वक्ता त्रिनिडाड-टुबैगो में भारतीय उच्चायोग में द्वितीय सचिव हिंदी, शिक्षा एवं संस्कृति के पद पर कार्यरत शिव कुमार निगम ने कहा कि भारत वंशियों द्वारा लिखा गया प्रवासी साहित्य एक महत्वपूर्ण दस्तावेज बन गया है। जबाकि वेबीनार की अतिथि वक्ता उजबबेकिस्तान से प्रो उल्फत मुखीबोवा ने बताया कि भारत को जानने के लिए हिंदी साहित्य जानना जरूरी है।
यूके से साहित्यकार एवं संपादक शैल अग्रवाल ने कहा कि भारत की बढ़ती साख के साथ यकीनन हिंदी की साख भी बढ़ेेगी क्योंकि टेम्स कभी गंगा नहीं बन सकती। कनाडा से डॉ. स्नेह ठाकुर नीदरलैंडस से प्रो मोहनकांत गौतम, कृष्ण कुमारी ने अपनी काव्यात्मक प्रस्तुति दी। जबकि स्वीडन से इंडो-स्कैंडिक संस्थान के उपाध्यक्ष सुरेश पांडे, पोलैंड से डॉ. संतोष तिवारी, केन्या से मिसेज इंडिया केन्या 2021-2022, रूही सिंह ने और दक्षिण कोरिया से अजय निबांलकर ने अपनी काव्यात्मक प्रस्तुति के माध्यम से भारत दर्शन कराया। न्यूजीलैंड से डॉ. पुष्पा वुड ने कहा कि भारत में लोग अंग्रेजी ही सीखना चाहते हैं ताकि अच्छी नौकरी मिल सके। वहीं,आस्ट्रेलिया से श्रद्धा दास ने गिरमिट लोक गीतों को स्वर दिया। चीन के क्वान्ग्तोंग विश्वविद्यालय से जुड़े डॉ.विवेक त्रिपाठी ने कहा कि भारत और चीन का संबध पुराना है। वहां पर हिंदी और प्रवासी साहित्य को ऐतिहासिक तथ्यों के साथ भी देखा जाना चाहिए।