IIT Mandi Research: पीने लायक नहीं रहा पंजाब का पानी, कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा
हाइलाइट्स
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दो दशक में दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में भूजल की गुणवत्ता में चिंताजनक गिरावट
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आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने अध्ययन में किया खुलासा
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निष्कर्ष पर्यावरण विज्ञान और प्रदूषण अनुसंधान पत्रिका में प्रकाशित
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पंजाब में 315 से अधिक स्थानों से लिए गए पानी के सैंपल
टीएनसी, संवाददाता
मंडी। भूजल के अत्यधिक दोहन से पंजाब का पानी दूषित हो चुका है। पिछले दो दशक में भूजल की गुणवत्ता में चिंताजनक गिरावट दर्ज की गई है। खासकर पंजाब के दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में पानी की गिरती गुणवत्ता कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा पैदा कर सकती हैं। यह चौंका देने वाला शोध आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने किया है।
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पंजाब में 315 से अधिक स्थानों से लिए गए पानी के सैंपल के अध्ययन में यह खुलासा हुआ है। शोध के निष्कर्ष पर्यावरण विज्ञान और प्रदूषण अनुसंधान पत्रिका में प्रकाशित हो चुके हैं। शोध का नेतृत्व आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ सिविल एंड एनवायर्नमेंटल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. डेरिक्स प्रेज़ शुक्ला द्वारा किया गया है और इसमें उनका सहयोग पीएचडी की छात्रा हरसिमरनजीत कौर रोमाना ने किया है, जो कि मूलरूप से पंजाब की निवासी हैं।
इसलिए प्रदूषित हुआ पानी
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अच्छे मानसून के अभाव में 74% से अधिक सिंचाई आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भूजल का उपयोग किया जा रहा है । भूजल स्तर नीचे जाने से भूजल स्तर की गहराई बढ़ गई है, जिसके परिणामस्वरूप भूजल की गुणवत्ता लगातार खराब हो रही है। गहरे भूवैज्ञानिक स्तर से भूजल का दोहन करना पड़ता है ,जो भारी धातुओं से भरपूर होता है और कुछ रेडियोएक्टिव होते हैं जिनका स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
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पंजाब की 94% आबादी अपने पीने के पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए भूजल पर निर्भर है, इसलिए भूजल के प्रदूषण के कारण गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हुई हैं। पंजाब को कभी “भारत का रोटी का कटोरा” कहा जाता था, वहीं अब इसे भारत की “कैंसर राजधानी” के रूप में जाना जाता है, जो जल प्रदूषण के गंभीर परिणामों और मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रतिकूल प्रभाव को दर्शाता है।
आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ सिविल एंड एनवायर्नमेंटल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. डीपी शुक्ला कहते हैं कि हमारा लक्ष्य यह आकलन करना था कि पीने के पानी के लिए भूजल की गुणवत्ता 2000 से 2020 तक विभिन्न स्थानों पर कैसे बदल गई है। इसमें नाइट्रेट और फ्लोराइड जैसे दूषित पदार्थों से जुड़े स्वास्थ्य खतरों में दस साल के रुझानों की जांच की गयी साथ ही विशेष रूप से निम्न भूजल गुणवत्ता वाले क्षेत्रों की पहचान भी की गई। वहीं इसके विपरीत, हिमालयी नदियों द्वारा पोषित उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में पानी की गुणवत्ता तुलनात्मक रूप से बेहतर रही है।
यह सुझाए उपाय
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भूजल की गुणवत्ता की जांच पर राज्य सरकार को तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
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भूजल प्रदूषण की चिंताजनकहालत से निपटने के लिए बनानी होगी नीति
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पीने के लिए असुरक्षित भूजल वाले स्थानों के बारे में निवासियों के बीच जागरूकता पैदा करता है।